बिखरे परिंदे
बिखरे परिंदों से केह दो
हम भी उड़ चले है हवा के रुख से
आप साथ हो या ना हो !
हर एक पन्ने की स्याही तक मिट गयी
आप फिर भी जेहेन में हो
हम रुके थे कभी चौराहे पर
युही वक्त को चौका देकर
कई लम्हे , कई सदियाँ
आप गए थे केहकर
लौट आएंगे यहिपर
लेकर निवाला और खुशिया
हम क्यूँ कुरेद रहे है
मिटटी के इन दानों को!
यादों की धुल तक
नजर नहीं आ रही,
धुंधला सा दिखाई देता है चेहरा
आवाज़ है कनोने सुनाई
ना जाने कब ?
इस दिल के कोने में
आपने खास जगह बनाई!
समय आ खड़ा है सामने
अब की बार नहीं फसेंगा
आप को भुलाने को,
ना याद करने को देगा
दगाबाज हमेशा
अपनी मनमानी करेगा
ये पंख भी बड़े जालिम है
सब के साथ ज्यादा फडफड़ाते है
अकेले में मानो रूठ जाते है
अब कैसे समझाए इन्हें
के उड़ चला है हर एक परिंदा
अपनी मान' सजाने को
सारा इकठ्ठा बटोरकर
आलिशान बनाने को
चढ़ उतार का है सफ़र
हमें कौन याद करेगा ?
पर उन्हें शायद ये इल्म नहीं
की ऊंचाईयो में भी
हवा का तूफान तेज होगा
यादों का सिलसिला
जारी रहेगा, और बढेगा
चाहो तो भुलाकर देखो!
बिखरे परिंदों से केह दो......................
- जीवक